सबसे स्थिर मुद्रा बनी रुबल

 


बीते 8 मार्च को एक अमेरिकी डॉलर का मूल्य 140 रूबल था। 7 मई को यह 66.50 रूबल हो गया। अब यह घटकर 53 रूबल पर आ गया है। रूस ने रूबल को सोने के मूल्य से जोड़कर और सिर्फ रूबल में तेल बेचने की घोषणा करके डॉलर व यूरो के मूल्य में 30 प्रतिशत की कमी कर दी। जाहिर है, अब पूरी दुनिया, खासकर पश्चिमी यूरोप के देश और जापान भारी मात्रा में डॉलर बेचकर रूबल खरीदेंगे, क्योंकि सोने से जुड़े होने के बाद रूबल रातोंरात दुनिया की सबसे स्थिर मुद्रा बन गई है। अमेरिका, जो अपने देश में हथियारों के अलावा कुछ और बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं करता है, एक भयानक आर्थिक संकट में फंस गया है। डॉलर के सिकुड़ने की स्थिति में वह करीब 350 अरब डॉलर के अपने बजट घाटे को पूरा नहीं कर सकता। यह गंभीर बेरोजगारी का कारण बनेगा।


सब पर भारी दिख रहा रूस

करीब चार महीने पहले जब रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला था और प्रतिक्रियास्वरूप अमेरिका एवं यूरोपीय संघ ने मास्को पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे, तब यह माना गया था कि जल्द ही रूस कमजोर पड़ जाएगा और यूक्रेन युद्ध से अपने कदम पीछे हटा लेगा। मगर ऐसा नहीं हुआ, और आगे भी शायद ही ऐसा होगा। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि तेल और गैस के लिए यूरोपीय देश अब भी रूस के ऊपर बुरी तरह निर्भर हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए रूस ने डॉलर के बजाय रूबल में अपने तेल बेचने का फैसला किया, जिससे अमेरिका को नुकसान हुआ है। आज स्थिति यह है कि रूबल दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है, और डॉलर कमजोर। रूस के साथ अच्छी बात यह भी है कि उसे चीन का साथ मिल रहा है, जिसे 'विश्व का विनिर्माण केंद्र' कहा जाता है। चीन की जरूरत भी सभी देशों को है। चूंकि आज जिसके पास आर्थिक ताकत है, वही देश ताकतवर है, इसलिए रूस और चीन इस मामले में अमेरिका पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।

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