तब-तब इस गर्दन पर आरी होती है
तब-तब इस गर्दन पर आरी होती है
जब भी जीने की तैयारी होती है
उसे खबर ही नहीं हुई दीवानों की
उसके लिए पर मारामारी होती है
जिस बोतल पर इश्क़ लिखा हो मत पीना
इसी दवा से सब बीमारी होती है
उथल-पुथल कर रखी अंदर चोरों ने
क्या ऐसे ही चौकीदारी होती है
पछताता है वो अपनी खामोशी पर
जब भी चुप रहने की बारी होती है
उस पर करे भरोसा कैसे दिल मेरा
उसकी सब बातें सरकारी होती हैं
मत खोलो गठरी गरीब की मजमे में
गठरी में उसकी लाचारी होती है
खुद को कोसा करता है वो जीवन भर
जिसने जीती बाजी हारी होती है
गैर नहीं है कोई भी इस दुनिया में
सबकी सबसे रिश्तेदारी होती है
कवि संजय कौशाम्बी ©®